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मंगल मिशन जैसे भारत के अंतरिक्ष मिशन जल्द ही पेलोड के भार को कम करने और ऊर्जा वाहक के रूप में कार्बन डाईऑक्साइड के साथ स्वदेशी रूप से विकसित धातु- कार्बन डाईऑक्साइड बैटरी की मदद से लॉन्च करने में सक्षम हो सकते हैं।
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प्रोफेसर शर्मा ने हाल ही में पहली बार कृत्रिम मंगल ग्रह के वातावरण में लिथियम-कार्बन डाईऑक्साइड बैटरी की तकनीकी व्यवहार्यता का प्रदर्शन किया। यह अध्ययन एल्सेवियर मटेरियल्स लेटर्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ था और इसके लिए एक भारतीय पेटेंट दायर किया गया है।स्वर्णजयंती फैलोशिप के एक भाग के रूप में उनका लक्ष्य धातु (एम)- सीओ2 बैटरी तकनीक का एक कार्यशील प्रोटोटाइप विकसित करना और मंगल मिशन में इस तकनीक की व्यवहार्यता का पता लगाना है। इसके अंतर्गत विशेष तौर पर सतह के लैंडर और रोवर्स के लिए कार्बन डाईऑक्साइड गैस का उपयोग किया जायेगा, जो वातावरण में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। धातु-सीओ2 बैटरी का विकास द्रव्यमान और मात्रा में कमी लाने के साथ ही अत्यधिक विशिष्ट ऊर्जा घनत्व प्रदान करेगा, जो पेलोड के भार में कमी लाएगा और ग्रहों के मिशन की लॉन्च लागत को कम करेगा।
इस शोध का एक अन्य समानांतर पहलू धातु-सीओ2 बैटरी प्रौद्योगिकी का विकास करना भी है, जो कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के जलवायु प्रभावों पर रोक लगाने के लिए एक आशाजनक स्वच्छ रणनीति के रूप में सामने आया है। धातु-सीओ2 बैटरियों में वर्तमान में उपयोग की जाने वाली ली-आयन बैटरियों की तुलना में काफी अधिक ऊर्जा घनत्व प्रदान करने और सीओ 2 उत्सर्जन को संतुलित करने के लिए एक उपयोगी समाधान प्रदान करने की एक बड़ी क्षमता है, जो ऊर्जा-गहन पारंपरिक सीओ2 निर्धारण विधियों से कहीं बेहतर है।