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कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'आत्मनिर्भर भारत' की अपील के जवाब में देश ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। आत्मनिर्भर देश बनने की अपनी यात्रा में भारत घरेलू उत्पादन बढ़ाने और आयात को कम करने पर गंभीरता से फोकस कर रहा है। इस दिशा में सुधारों के लिए अनेक नीतियों और कानूनों की समीक्षा की गई है। इस मामले में ऑयल सेक्टर को प्रधानमंत्री के लक्ष्य की दिशा में अहम योगदान के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत के आत्मनिर्भर बनने की राह में सबसे बड़ी बाधा तेल आयात पर निर्भरता है क्योंकि भारत अपनी जरूरत के 80 प्रतिशत क्रूड ऑयल का आयात करता है और पिछले दो साल में इसके आयात में 100 अरब डॉलर से ज्यादा सालाना खर्च किया है। यह हालात अंतरराष्ट्रीय बाजार में चल रही कम कीमतों के बाद है। यदि कीमतें तेज चल रही होतीं तो पिछले कुछ वर्षों में तेल आयात पर खर्च और ज्यादा रहता। मूल्य और मात्रा दोनों ही स्तर पर भारत का तेल आयात लगातार बढ़ रहा है।
भारत का तेल आयात |
वर्ष | अरब डॉलर |
2015-16 | 64 |
2016-17 | 70 |
2017-18 | 88 |
2018-19 | 112 |
2019-20 | 102 |
आयात निर्भरता को कम करने की दिशा में एक बड़ी बाधा घरेलू स्तर पर कम उत्पादन है। भारत में घरेलू स्तर पर तेल उत्पादन 35 मिलियन टन है, जो देश के कुल 200 मिलियन टन से ज्यादा के उपभोग की तुलना में बहुत ज्यादा नहीं है। हालांकि अगर घरेलू उत्पादन में गिरावट को रोका जा सके तो अरबों डॉलर की बचत हो सकती है।
सरकार ने घरेलू तेल एवं गैस उत्पादन को बढ़ाने और ऊर्जा दक्षता एवं संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत स्तर पर कई पहल की है। लेकिन इस दिशा में उद्योग जगत को भी कदम उठाने की जरूरत है। कई ऐसे कदम हैं, जिन्हें आसानी से उठाया जा सकता है, लेकिन किसी ना किसी कारण से उन पर आगे नहीं बढ़ा जा सका है। केयर्न के आंध्र प्रदेश के तटीय इलाके में रेवा ब्लॉक और गुजरात के कैंबे में सीबी/ओएस-2 ब्लॉक ऐसे ही क्षेत्र हैं। इन दोनों क्षेत्रों की संयुक्त क्षमता 24 से 25 हजार बैरल (लगभग) प्रतिदिन की है, जो सालाना 1.25 मिलियन टन के बराबर बनती है।
इसी तरह से पीवाई-1 गैस फील्ड (तमिलनाडु के अपतटीय इलाके में) भी है, जहां 12 एमएमएससीएफडी की संभावित क्षमता है, जिसका प्रयोग नहीं हो पा रहा है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय को सौंपी गई योजना के तहत इन तीन कुओं की खुदाई के लिए 215 करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत होगी।
इसी तरह की एक तैयार संपत्ति है तमिलनाडु के ही अपतटीय क्षेत्र में पीवाई-3 तेल क्षेत्र। अहम बात यह है कि पीवाई-3 में 20 मिलियन बैरल का रिजर्व है जो भारत के घरेलू उत्पादन के करीब एक फीसद के बराबर है, लेकिन कुछ पक्षों के हितों के टकराव के कारण इसका विकास रुका हुआ है। पीवाई-3 में घरेलू उत्पादन के एक फीसद यानी सालाना लगभग 130-135 मिलियन टन की क्षमता है और इससे सालाना एक अरब डॉलर (या करीब 8,000 करोड़ रुपये) की विदेश मुद्रा की बचत हो सकती है।
कैंबे बेसिन के सीबी/ओएस-2 की क्षमता भारत के घरेलू उत्पादन के करीब 2.5 फीसद के बराबर है। इस ब्लॉक में उत्पादन बढ़ने पर सभी पक्षों के बीच सेस एवं रॉयल्टी के मसले के हल के लिए पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के हस्तक्षेप की जरूरत है।
ये और इसी तरह की अन्य परियोजनाओं में भारत के घरेलू क्रूड ऑयल उत्पादन के करीब 10 प्रतिशत के बराबर योगदान देने की क्षमता है। पूरे फोकस के साथ सभी पक्षों की सहभागिता से इन परियोजनाओं से जुड़े मुद्दों का समाधान किया जाना चाहिए क्योंकि यह केवल कोई कॉर्पोरेट एजेंडा नहीं, बल्कि राष्ट्र के हितों से जुड़ा मसला है। इसलिए मुद्दों के हल के लिए किसी भी पक्ष को एक कदम आगे बढ़ाने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए, जिससे देश को थोड़ा ही सही लेकिन हरसंभव सहयोग किया जा सके। कहा भी जाता है कि बड़े से बड़े सफर की शुरुआत भी पहले कदम से ही होती है।
तेल एवं गैस के घरेलू उत्पादन में तेजी के लक्ष्य के साथ सरकार ने 2018 में ओपन एक्रेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (ओएएलपी) के तहत पहले दौर की बोली की शुरुआत की थी, जिसमें एक्सप्लोरर को आसान शर्तों के साथ एक्सप्लोरेशन के लिए रुचि का क्षेत्र चुनने का विकल्प मिलता है। हाइड्रोकार्बन महानिदेशक (डीजीएच) के मुताबिक, 31 मार्च, 2020 तक ओएएलपी की चार दौर की बोली में करीब 7.5 करोड़ डॉलर का निवेश आया है। रेवेन्यू शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट व्यवस्था के तहत हाईड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (हेल्प) के माध्यम से एक्सप्लोरेशन के ज्यादा अवसर देते हुए सरकार ने भारत के एक्सप्लोरेशन एवं प्रोडक्शन सेक्टर को खोल दिया है। हेल्थ के तहत ओएएलपी के माध्यम से अब तक एक्सप्लोरेशन एंड प्रोडक्शन कंपनियों को एक्सप्लोरेशन के लिए 1,36,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र दिया जा चुका है। इसके अलावा भी भारत के बेसिन में अब भी 'येट टु बी डिस्कवर्ड' की श्रेणी में करीब 30,000 एमएमटीओई हाइड्रोकार्बन संसाधन मौजूद है। 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के तहत नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव के साथ निवेशकों को ध्यान में रखकर एक्सप्लोरेटरी ड्रिलिंग के लिए पर्यावरण क्लीयरेंस से छूट, ब्लॉक की प्रीक्लीयरेंस, कॉन्ट्रेक्ट प्रबंधन के डिजिटलीकरण जैसे कई कदम भी उठाए गए हैं। साथ ही सरकार टेक्नोलॉजी संबंधी क्षमता को मजबूत बनाने तथा प्रशासन को इलेक्ट्रॉनिक एवं ऑटोमैटिक बनाने को भी प्राथमिकता में रख रही है।
सरकार ने मौजूदा समय में डाटा पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए इस सेक्टर में डाटा आधारित सुधारों पर भी जोर दिया है। नेशनल डाटा रिपोजिटरी (एनडीआर), नेशनल कोर रिपोजिटर, नेशनल सिस्मिक प्रोग्राम (एनएसपी) और हाइड्रोकार्बन रिसोर्स रीअसेसमेंट जैसे कदम उद्योग, यूनिवर्सिटी एवं आरएंडडी कंपनियों तक गुणवत्तापूर्ण डाटा की उपलब्धता, पहुंच एवं इनके क्रियान्वयन की दिशा में सरकार की दूरदर्शिता का प्रमाण हैं। कुल मिलाकर इन सुधारों से भारत में वैश्विक तेल एवं गैस क्षेत्र के निवेशकों के आने की दिशा में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और इस सेक्टर में उपलब्ध अवसरों से हाइड़ोकार्बन के रूप में रिटर्न भी सुनिश्चित हो सकेगा।
यह समय मौके से भरपूर है क्योंकि भारत में एक्सप्लोरेशन एंड प्रोडक्शन सेक्टर में अपार क्षमता है। नए कदमों से साधारण, पारदर्शी एवं निवेशकों के अनुकूल व्यवस्था बनेगी जिससे भारत में तेल एवं गैस उत्पादन तेजी से बढ़ सकेगा। ऐसे में इस प्रयास का हिस्सा बनना फायदेमंद हो सकता है।